فروغ ديده نرگس
| شـكفت غنچه وبنشست گل به بار، بيا! | دمـيد لالـه و سـورى ز هر كنار، بيا! | |
| بـهار آمـد ونـشكفت بـاغ خاطر ما | تـو اى روانِ سـحر! روح نوبهار! بيا! | |
| مگر چه مـايه بود صبر، عاشقان تو را؟! | ز حـد گذشـت دگر رنج انتظار، بيا! | |
| ز هـر كرانه، شقايق دميده از دل خاك | پى تـو تـسلّى دلهـاى داغـدار، بيا! | |
| ز عـاشقان بـلاكش، نـظر دريغ مدار | فـروغ ديـده نـرگس! به لالهزار بيا! | |
| ز مـنجنيق فـلك سـنگ فتنه مى بارد | مـباد آن كـه فرو ريزد اين حصار، بيا! | |
| يـكى بـه مـجمع رندان پاك باز، نگر! | دمـى بـه حـلقه مردان طرفه كار، بيا! | |
| بـه سوى غاشيه داران مير عشق، ببين! | بـه كـوى نـادره كاران روزگار، بيا! | |
| چه نـقشها كه بنشستند به صحيفه دهر | ز خـونشان شده روى شفق نگار، بيا! | |
| طـلايه دار تـواند ايـن مبشّران ظهور | بـه پاس خـاطر ايـن قوم حقگزار بيا! | |
| دريـن كوير كه سوزان بود روان سراب | تـو اى سـحاب كرم! ابر فيض بار بيا! | |
| ز دست برد مرا، شور عشق وجذبه شوق | قــرار خـاطـر بــى قـرار بـيا! |
